Wednesday, November 07, 2012

उदासी


तुझे दामन छुड़ा कर जाने भी देते,
बर्दाश्त के दायरे,
नापे हैं मैंने,
यादों के समंदर की गहराई,
थोड़ी कम है,
मेरे दर्द की हद से,
बात बस इतनी है,
की लोग मेरी उदासी की वजह पूछ लेते हैं।

--
शौर्य जीत सिंह 
06 नवम्बर, 2012 - जमशेदपुर

Tuesday, October 16, 2012

डायरी के पन्ने

खामोश दिन,
और बातें करती रातों के बीच,
एक वक़्त ऐसा होता है,
जब सन्नाटे शोर करते हैं,
और मैं,
अँधेरों से रौशन होता हूँ,

रंगों की उधेड़-बुन में,
सारे ताने बाने कोरे रह जाते हैं,
धूप गीला करती है हर बार,
पानी पा कर सूख चुके खयालों को,
और मैं निकल पड़ता हूँ,
यादो की उसी किसी पुरानी झील के किनारे,
जहाँ कलम में स्याही सूख कर,
मोती की शक्ल ले लेती है,
और कुछ टुकडे छोड़ जाती है अपने,
मेरी डायरी के पन्नो पर,
उन्हें समेट  कर हर दफा,
डायरी में यूँ  बंद कर लेता हूँ,
जैसे बरसों लगेंगे,
उससे फिर मिलने में।

--
शौर्य जीत सिंह
17 अक्टूबर, 2012 - जमशेदपुर


त्रिवेणी

बारिश खिडकियों के रस्ते यूँ  आ गयी घर में,
जैसे दबे पाँव तुम आ गए हो मेरे लिहाफ में,

बारिश ने आज ठंडा नहीं किया, कुछ हरारत दे गयी।

--
शौर्य जीत सिंह
11 अक्टूबर, 2011 - जमशेदपुर 

Saturday, September 22, 2012

आँसुओं के रंग होते


आँसुओं के रंग होते
तो तुम देख पाते
मेरे घर की दीवारें सूनी नहीं,
लाल हैं उस खिड़की के नज़दीक,
जहाँ बैठ कर,
तुम कॉफ़ी पिया करते थे,

तुम देख पाते,
फर्श का वो टुकड़ा,
जहाँ चटाई बिछा कर शतरंज खेला करते थे,
कुछ नीला पड़ गया है,
मैं लाख कोशिश करता हूँ,
ये धब्बे जाते नहीं,

तुम देख पाते,
लॉन का वो कोना,
जहाँ बैठ कर शाम को घंटों निकाल दिया करते थे,
वहाँ की घास कुछ पीली सी पड़ गयी है,

आँसुओं के रंग होते,
तो तुम देख पाते,
मेरे चेहरे का रंग कुछ दब गया है.

--
शौर्य जीत सिंह
२१ सितम्बर २०१२, जमशेदपुर 

हर बार


ज़िन्दगी में अगर सब कुछ मिल गया होता,
तो बड़ा अदना सा इंसान होता मैं भी,

सारी ख्वाहिशें पूरी हो जाती,
तो जोश थोड़ा कम होता,
किसी नए काम से पहले,

सारे सपनों को हासिल कर लेता,
तो शायद नींद ना आती,
आँखें बंद ना होती खुद से, थक कर 

सच है अगर सब मिल गया होता,
अदना ही होता मैं भी,

हर बार थोड़ी कमी रह जाती है,
और हर बार,
मैं थोड़ा और आगे बढ़ जाता हूँ.

--
शौर्य जीत सिंह
२१ सितम्बर, २०१२ - जमशेदपुर

Thursday, September 13, 2012

त्रिवेणी


ज़िन्दगी की रफ़्तार हर बार थोड़ी और तेज़ हो जाती है,
और मैं हर बार थोडा और पीछे छूट जाता हूँ,

ज़िन्दगी ने वो सारे ढाबे मिस कर दिए, जिनपे देर तक पकी चाय मिलती है |

--
शौर्य जीत सिंह
३० अगस्त, २०१२
जमशेदपुर.

Wednesday, August 29, 2012

ख़ुशी


उम्र के किसी मोड़ पर,
मुलाकात होगी,

सुनहरी धूप होगी,
सुकून भरी एक रात होगी,
कहीं दूर समंदर पे,
जहाँ मिल जाती है जमीं आसमाँ से,
उसपे पहुँच कर सुस्ताने की बात होगी,
उम्र के किसी मोड़ पर,
मुलाकात होगी,

हवा पे बैठ कर,
बादल से पानी को निचोडूंगा,
बिना कुछ भी कहे,
सब जान जाएँ, चाहता क्या हूँ,
बहुत दूर तक खामोशी होगी,
बिना लफ़्ज़ों के बात होगी,
उम्र के किसी मोड़ पर,
मुलाकात होगी,

हर तरफ धुंध होगी,
भीनी भीनी बरसात होगी,
टपकती ओस से भीगी,
छत होगी, घर की हर दीवार होगी,
ना भागमभाग होगी, दौड़ कर आगे निकलने की,
वहीँ से एक नयी शुरुआत होगी,
हाँ, उम्र के उसी मोड़ पर,
तुझसे मुलाक़ात होगी.

--
शौर्य जीत सिंह
२९ अगस्त, २०१२
जमशेदपुर

त्रिवेणी


सभी सपनों के सौदे कौड़ियों के दाम कर आया मैं,
नीदें भी बेंच डाली तुमसे दूर होने की जल्दी में,

आज कल मेरे बिस्तर पर सिलवटें पड़ जाया करती हैं.

--
शौर्य जीत सिंह
२७ अगस्त २०१२
जमशेदपुर

Monday, July 09, 2012

रंग

कुछ रंग धीरे चढ़ते हैं,
और कुछ चढ़ते ही नहीं,
मुझ पर सामाजिकता का रंग,
कुछ धीरे चढ़ा,
और समझ का,
कभी चढ़ा ही नहीं,
कोशिश कई बार की,
तुझे खुद से अलग करने की,
खैर,
कुछ रंग उतरते भी तो नहीं |

शौर्य जीत सिंह
०९/०७/२०१२, जमशेदपुर

Thursday, July 05, 2012

लिबास


उदासियाँ,
एक पोटली में बाँध कर,
सँजो कर रखी है,
पहन लूँगा आँखों पर,
जब ज़रूरत होगी,
रोने की |

खुशियाँ,
किसी छोटे से गट्ठर में हैं,
संदूक में सम्हाल के रखी हैं,
होठों पे पहन लुंगा,
उसको भी,
जब ज़रूरत होगी,
हँसने की |

गुस्सा भी,
किसी पुरानी चादर में लपेट कर,
पड़ा होगा इन सब के ऊपर,
की आसानी से मिल जाए,
जब ज़रूरत हो,
खीझने की |

ये सारे जज़्बात,
लिबास हैं उस मन के,
जिसके मरने की खबर,
मुझे भी ज़रा देर से लगी ||

--
शौर्य जीत सिंह
जमशेदपुर, २९/०६/२०१२

Monday, May 28, 2012

क्या लिखूँ


मैं जानता नहीं ,
कि अब आगे लिख  पाऊंगा ,
शब्दों की नुमाइश,
भावना की स्याही से,
सजा  पाऊंगा ,

कि जितनी भी रही वजहें,
कलम में रंग भरने की,
वो सारी मिट गयी हैं,
बुझ गयी हैं,

मुझे अब शाम को सूरज बड़ा फ़ीका सा लगता है,
कभी सिंदूरी इसके रंगों में सपने पिरोता था,
नगमें  बनाता था;

कई दिन हो गए छत पे गए,
नहीं की चाँद से बातें,
जब उसकी गुफ्तगू औरों को मैं,
कविता बनाकर पेश करता था,
कभी नाराज़ होता था कभी हँसता था वो मुझ पर,
उसी का अक्स था हर लफ्ज़ में
मगर अब वो नहीं दिखता

पराये जान पड़ते हैं
ये सारे शब्द अब मुझको,
कभी मुझको अकेलेपन में
ये साथी से लगते थे,
मैं जानता नहीं ,
कि अब आगे लिख  पाऊंगा ,
शब्दों की नुमाइश,
भावना की स्याही से,
सजा  पाऊंगा ,

शौर्य जीत सिंह
२८ मई २०१२, गुडगाँव

Monday, May 21, 2012

शौर्य

मैं अटल विश्वास हूँ,
अधिकार हूँ,
अभिमान हूँ,

मैं धरा पे सूर्य,
नभ में रोशनी की चाह में,
अग्नि हूँ, 
उल्लास हूँ,
मैं श्रृष्टि का वरदान हूँ,

अनगिनत विघ्नों से आगे,
बढ़ रहा प्रत्येक दिन,
मैं समय की आस हूँ,
उम्मीद हूँ,
आह्लाद हूँ,

मैं शिवा का कंठ,
गीता सार हूँ मैं कृष्ण का,
मैं प्रतिज्ञा भीष्म की,
संसार का आधार हूँ,


मैं सनातन धर्म हूँ,
मैं काल का संवाद हूँ,
पार्थ के रथ की ध्वजा,
पुरुषार्थ हूँ,
परमार्थ हूँ,

मैं चमक हूँ चक्षु की,
मन में बसा अहसास हूँ,
मैं पवन जल अग्नि धरती,
आसमान हूँ,
शौर्य हूँ |

--
शौर्य जीत सिंह,
१९ मई २०१२, गाज़ियाबाद

Sunday, May 13, 2012

मुलाक़ात

प्लेटफ़ॉर्म के उस तरफ,
दो गुज़रती हुई ट्रेनों की खिड़कियों के बीच,
उसका चेहरा दिखा,
और कुछ देर बाद,
ओझल हो गया,
ना जाने कौन सी खिड़की में गुम हो गया,

मुलाक़ात बरसों बाद की थी,
जो शुरुआत से पहले ही ख़तम हो गयी,
मैं कभी समझ ना सका,
कब ये छोटी सी दूरी,
मीलों के फासलों में तब्दील हो गयी,

कुछ मिनटों में सब कुछ गुज़र गया,
अगर कुछ बचा,
तो सिर्फ़ प्लेटफ़ॉर्म,
भीड़,
लोगों को दूर करती खिड़कियाँ,
और मैं |

शौर्य जीत सिंह
१२/०५/२०१२
दिल्ली

धुँधले रिश्ते

पुरानी किसी किताब के,
धुँधले हो चुके शब्दों के,
मायने नहीं बदले अब तक,
हाँ अब पढ़े नहीं जाते,
इसलिए याद कम रहते हैं |

पुराने दोस्त,
जिनसे मिलना नहीं होता,
अहमियत उनकी,
अभी उतनी ही है,
हाँ अब रोज़ बातें नहीं करते |

ऐसे और भी कई रिश्ते हैं,
जो समय की रेत पर,
पुरानी किताब के,
धुँधले शब्दों की तरह,
रोज़ धुँधले हो रहे हैं,
पर हमेशा सबसे ख़ास बने रहते हैं |

--
शौर्य जीत सिंह
१२/०५/२०१२
दिल्ली

Monday, May 07, 2012

याद आएगा

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|

रात को जगना सोचूंगा या,
चलना संग याद आएगा
,
याद आएगा सपने बुनना
,
या झूठे वादे मेरे
,
तेरी भीगी पलकें सोचूँ
,
या हँसना याद आएगा
|

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|

साँसों की आवाज़ सुनूँ फिर,
या अपने गुस्सम-गुस्से
,
बिना बात के लम्बे झगड़े
,
चुप होना याद आएगा
,
मेरी कविता के मतलब को
,
नहीं समझ पाना तेरा
,

मेरा फिर खुश हो कर तुझको,
समझाना याद आएगा |

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|



क्या सोचूँ क्या मिस कर दूँ इनमे,
लिस्ट बहुत ये लम्बी है,
भूला कुछ तो झगड़ोगे फिर
,
हाँ ये भी याद आएगा
|

तेरी यादों से रौशन हूँ,
और नहीं कुछ पास मेरे
,
और ना हो कुछ हासिल मुझको
,
बस ये संग रह जाएगा
|

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|

--
शौर्य जीत सिंह,
०४/०५/२०१२

दिल्ली से जयपुर तक


Thursday, April 19, 2012

त्रिवेणी

मुश्किल है ये कह पाना कि ज़िन्दगी किस पल में है,
ये बहती रहती है पलों के उतारों चढ़ावों के बीच,

हर पल यही सोच के जी लेता हूँ हिस्सा कोई भी ज़िन्दगी का छूट ना जाये.

--
शौर्य जीत सिंह
मुंबई, १४/०४/२०१२

Monday, April 16, 2012

गुलज़ार हुआ

हवा आज फिर से दरवाजा धकेल कर घर में आ गयी,
अलबत्ता जिसके सफ़हे फड़फड़ा सके,ऐसी कोई किताब ना मिली, ,

वो कमरा तुम्हारे जाने के बाद से ही खाली है.

 -
शौर्य जीत सिंह
०५/०४/२०१२
जमशेदपुर
(गुलज़ार साहब के लिए)

Tuesday, March 13, 2012

खट्टे फ्लेवर

बक्सा एक,
किताबों से भरा हुआ,
बंद रखा है
कई महीनों से,
आलमारी के ऊपर कमरे में,

ख्याल कुछ कच्चे से,
बंद किये थे उनमे,
सोचा था खोलूँगा,
तो पक कर निकलेंगे,

अभी भी उतने ही खट्टे लगते हैं,
समझ का कोई भी स्वाद,
चढ़ा नहीं है उन पर,
इतने महीनों में,

सोचता हूँ,
फिर से बंद कर दूँ इन्हें बक्से में,
या खट्टा ही रहने दूँ,
कुछ नया फ्लेवर लायेंगे,
फ़ीके से शब्दों के अट-पटे से अर्थों में.

--
शौर्य जीत सिंह
जमशेदपुर,
१३ मार्च 2012

Thursday, February 23, 2012

त्रिवेणी


खिड़कियाँ खुली रह गयीं बीती रात घर की,
हवा ठंडा कर गयी मुझको तमाम कोशिशों के बाद भी,

अक्ल की कई तहों के नीचे था - मन ठंडा ना हुआ.

--
शौर्य जीत सिंह
२२/०२/२०१२
जमशेदपुर

Tuesday, February 21, 2012

सफ़र


ये दुनिया बहुत छोटी है,
लोग चौबीस घंटों में अमरीका पहुँच जाया करते हैं,
तुमसे तो फिर,
टूटे ही सही,
दिल के कुछ तार भी बंधे हैं,
कहीं तो मिलोगे,
कोई पहाड़ी,
कोई झरना,
कोई मिट्टी का टीला,
सूना सा होगा,
कहीं तो होगा,
जहाँ सफ़र ख़तम होगा मेरा.

--
शौर्य जीत सिंह
०५/०२/२०१२
गंगटोक

Sunday, February 12, 2012

शकलों के आईने

शकलें आईने में दिखतीं,
तो लोगों में शर्म होती,
लिहाज़ होता,
ग़ैरत होती,

शकलें तो आँखों में दिखती हैं,
इसीलिए,
स्नेह से भरी चार आँखें,
मिलते ही,
झुक जाती हैं.

--
शौर्य जीत सिंह
गंगटोक, ०७/०२/२०१२

Saturday, February 11, 2012

त्रिवेणी

१. रास्ता कुछ सौ किलोमीटर का था, कई पुल थे उनपे,
    हम हर बार अपना रास्ता बदल कर तीस्ता के दायें बाएं होते रहे,

    कम्बख्त तीस्ता ने अपना रास्ता एक बार भी नहीं बदला हमारे लिए.

२. बड़े कठोर होते हैं ये पहाड़ भी,
    सदियों से अडिग, सब कुछ सहते हुए,

    जब दर्द हद से गुज़र जाये, तो इनसे भी झरने छूट जाया करते हैं.

३. तुम ढुलकते रहना मेरे कंधे पर,
    मैं सम्हालता रहूँगा हर बार तुमको,

   मैं लड़खड़ाउंगा नहीं, जब तक साथ हो तुम.

४. नज़रें मिला कर, झुका कर, झगड़ कर, मुस्कुरा कर,
    हम बहुत देर तक एक ही दिशा में साथ चलते रहे,

    जाने मैं उसके पीछे था या वो मेरे.

--
शौर्य जीत सिंह
०५-०७/०२/२०१२
जलपाईगुड़ी, गंगटोक,लाचुंग, यूमथांग

Monday, January 30, 2012

कोणार्क में, पुल पर


समुद्र के नज़दीक वाले,
नदी के पुल पर,
हमेशा यही सोचता हूँ,
क्या होता होगा,
जब बहती हुई नदी,
मिलती होगी, समुद्र में,
अचानक से थम जाती होगी,
समुद्र के उथल-पुथल वाले पानी में,
या लोग कहते हैं,
एक लकीर सी पड़ जाती है,
निशान बन जाते हैं,
नदी के बहाव में.

बताना शायद मुश्किल होता होगा,
नदी कहाँ ख़त्म हुई,
और समुद्र की शुरुआत कहाँ हुई.

सोचता हूँ,
मिलूंगा तुझसे तो क्या होगा,
थम जाऊंगा,
या निशान पड़ेगा मुझ पर.

--
शौर्य जीत सिंह
पुरी से कोणार्क के बीच- २७/०१/२०१२
जमशेदपुर - ३०/०१/२०१२

Friday, January 20, 2012

सूखे फूल

एक किताब है,
कुछ सौ-इक पन्नों की,
पढ़ा नहीं उसको कभी पर,
हमेशा सिरहाने रख कर सोता हूँ,
जिन शब्दों के मायने नहीं मालूम,
महसूस करता हूँ उनको,

बिखरी हुई पत्तियों वाला,
एक सूखा फूल है उसमें,
पड़ा रहता है खामोश सा,
उन्ही दो पन्नों के बीच,
खुशबू तो नहीं देता,
पर उससे ही महकता रहता हूँ,
रात भर.

--
शौर्य जीत सिंह
२०-०१-२०१२, जमशेदपुर

Friday, January 13, 2012

झगड़ा

झगड़ा कई बरसों का था,
और निपटारा आज होना था.

मैंने त्योरियाँ चढ़ा रखी थी,
और जान बूझ कर,
नज़रंदाज़ किया उसकी हर हरकत को,
कुछ धमकियाँ भी दीं, कनखियों से,

वो मुस्कुरा के चल दिया,
मानो उसकी आँखों ने कहा हो,
ले तू आज फिर से हार गया.

--
शौर्य जीत सिंह
१४/०१/२०१२
जमशेदपुर

तू आदत है

तू वो आदत है,
जो छूटती नहीं,
तू वो सपना है,
जिसे खुली आँखों से देखता हूँ,
तू वो धुन है,
जिसे हर बार,
अकेले में गुनगुनाता हूँ,
तू वो आहट है,
जो कानों से ओझल नहीं होती,
तू वो तन्हाई है,
जो मेले सी लगती है,
तू वो खुशबू है,
जिससे लोग मुझे पहचान लेते हैं,
तू वो तकिया है,
जिससे चेहरा ढक कर,
कभी भी रो लेता हूँ,
तू वो कोना है दिल का,
जो गीला रहता है, हर वक़्त,

हाँ, तू वही एक आदत है,
जो छूटती नहीं!

--
शौर्य जीत सिंह
०१/११/२०११
जमशेदपुर
जो बातें कभी कह ना पाऊँ,
उन्हें खुद से समझ लेना तुम,

ज़रा कच्चा हूँ बोलने में - इसीलिए लिख लेता हूँ!!

शौर्य जीत सिंह
०४/११/२०११
जमशेदपुर
कौन कहता है दर्द की इंतेहा होती है !!
यूँ तो तेरी हर अगली मुलाक़ात से पहले अनगिनत पल होते हैं !!

--
शौर्य जीत सिंह
२६/११/२०११
जमशेदपुर