मुट्ठी भर धूप आती है,
मेरे कमरे में,
शाम ढलने पे रोज़,
रातरानी के फूलों की,
भीनी भीनी सी खुशबू आती है।
बारिश की बौछारें नहीं आती,
खिड़की की जगत से छिटक कर,
हलकी फुहारें आती हैं।
दूर किसी कोयल की कूक,
और गर्म मौसम में मीठी पुरवाई भी,
खिड़की पर लगे जाल से छन के आती है,
जहाँ तेरी तस्वीर रखी है,
हाँ उसी खिड़की से हो कर,
मेरे कमरे में,
चुटकी भर ज़िन्दगी आती है।
--
शौर्य जीत सिंह
12/03/2013 - आजमगढ़
मेरे कमरे में,
शाम ढलने पे रोज़,
रातरानी के फूलों की,
भीनी भीनी सी खुशबू आती है।
बारिश की बौछारें नहीं आती,
खिड़की की जगत से छिटक कर,
हलकी फुहारें आती हैं।
दूर किसी कोयल की कूक,
और गर्म मौसम में मीठी पुरवाई भी,
खिड़की पर लगे जाल से छन के आती है,
जहाँ तेरी तस्वीर रखी है,
हाँ उसी खिड़की से हो कर,
मेरे कमरे में,
चुटकी भर ज़िन्दगी आती है।
--
शौर्य जीत सिंह
12/03/2013 - आजमगढ़