Friday, February 18, 2011

छोटू

नाम तो कई थे उसके,
मैं,
अक्सर छोटू बुलाता था.
नुक्कड़ की चाय वाले का,
नया छोटू था.

खाकी निक्कर पहना करता था,
लम्बी थी उससे,
टाँगों तक पहुँचती थी,
शर्ट ठीक ठीक याद नहीं,
दो थीं शायद,
प्रमोशन भी हुआ था इधर उसका,
आज कल चाय भी बनाता था,
सोता भी उसी दुकान में,
एक कोने में था,

गए दंगो के बाद से दिखता नहीं,
दुकान पे चाय का स्वाद तो पहले सा ही है,
रंग कभी हरा तो कभी सिंदूरी लगता है..!!

शौर्य जीत सिंह
१५/०२/२०११
आग लिखी थी कुछ पन्नो पर,
आज सिर्फ कालिख के निशाँ से बाकी हैं,

दो बूँदें आंसू की गिरी थी एक मर्तबा उनपे!!


शौर्य जीत सिंह
१५/०२/२०११