Friday, April 03, 2015

बबलू बन्दर

बबलू बन्दर बैठा छत पर 
दाँत निपोड़े हर आहट पर 
खी खी कर के हमें डराए  
लट्ठ दिखाओ झट भग जाए। 

चोरी कर मोबाइल लाया 
हर बन्दर को फ़ोन लगाया 
सुनी किसी ने एक नहीं पर 
दिन भर कितना ज़ोर लगाया। 

चोरी का ये खेल बुरा है 
पर बबलू को नहीं पता है 
चिंटू ने अब पुलिस बुलाई 
बबलू की है शामत आई।  

०३/०४/२०१५, ग़ाज़ियाबाद 


Wednesday, April 01, 2015

फ़िर से अपना बचपन देखा

आज फ़िर  से अपना बचपन देखा,
जब माँ से बिछड़ते हुए 
स्टेशन पे,
एक बच्चे की आँखें नम हो गयी।

रुँधे हुए गले से निकले शब्द 
टूटे काँच जैसे 
कानों पर बिखरते थे,
और छोड़ जाते थे 
एक गहरी खरोंच 
मेरे मन पे। 

जल्दी लौट आने का वादा दे कर 
जो बच्चा बाप के साथ 
ट्रेन में चढ़ गया 
मेरे अतीत का ही कोई हिस्सा था। 

जो आँसू की एक बूँद मेरी आँख से टपकी 
कुछ बीस साल पुरानी थी शायद। 

३१ मार्च २०१५, आज़मगढ़