आँसुओं के रंग होते
तो तुम देख पाते
मेरे घर की दीवारें सूनी नहीं,
लाल हैं उस खिड़की के नज़दीक,
जहाँ बैठ कर,
तुम कॉफ़ी पिया करते थे,
तुम देख पाते,
फर्श का वो टुकड़ा,
जहाँ चटाई बिछा कर शतरंज खेला करते थे,
कुछ नीला पड़ गया है,
मैं लाख कोशिश करता हूँ,
ये धब्बे जाते नहीं,
तुम देख पाते,
लॉन का वो कोना,
जहाँ बैठ कर शाम को घंटों निकाल दिया करते थे,
वहाँ की घास कुछ पीली सी पड़ गयी है,
आँसुओं के रंग होते,
तो तुम देख पाते,
मेरे चेहरे का रंग कुछ दब गया है.
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शौर्य जीत सिंह
२१ सितम्बर २०१२, जमशेदपुर