Saturday, September 22, 2012

आँसुओं के रंग होते


आँसुओं के रंग होते
तो तुम देख पाते
मेरे घर की दीवारें सूनी नहीं,
लाल हैं उस खिड़की के नज़दीक,
जहाँ बैठ कर,
तुम कॉफ़ी पिया करते थे,

तुम देख पाते,
फर्श का वो टुकड़ा,
जहाँ चटाई बिछा कर शतरंज खेला करते थे,
कुछ नीला पड़ गया है,
मैं लाख कोशिश करता हूँ,
ये धब्बे जाते नहीं,

तुम देख पाते,
लॉन का वो कोना,
जहाँ बैठ कर शाम को घंटों निकाल दिया करते थे,
वहाँ की घास कुछ पीली सी पड़ गयी है,

आँसुओं के रंग होते,
तो तुम देख पाते,
मेरे चेहरे का रंग कुछ दब गया है.

--
शौर्य जीत सिंह
२१ सितम्बर २०१२, जमशेदपुर 

हर बार


ज़िन्दगी में अगर सब कुछ मिल गया होता,
तो बड़ा अदना सा इंसान होता मैं भी,

सारी ख्वाहिशें पूरी हो जाती,
तो जोश थोड़ा कम होता,
किसी नए काम से पहले,

सारे सपनों को हासिल कर लेता,
तो शायद नींद ना आती,
आँखें बंद ना होती खुद से, थक कर 

सच है अगर सब मिल गया होता,
अदना ही होता मैं भी,

हर बार थोड़ी कमी रह जाती है,
और हर बार,
मैं थोड़ा और आगे बढ़ जाता हूँ.

--
शौर्य जीत सिंह
२१ सितम्बर, २०१२ - जमशेदपुर

Thursday, September 13, 2012

त्रिवेणी


ज़िन्दगी की रफ़्तार हर बार थोड़ी और तेज़ हो जाती है,
और मैं हर बार थोडा और पीछे छूट जाता हूँ,

ज़िन्दगी ने वो सारे ढाबे मिस कर दिए, जिनपे देर तक पकी चाय मिलती है |

--
शौर्य जीत सिंह
३० अगस्त, २०१२
जमशेदपुर.