झगड़ा कई बरसों का था,
और निपटारा आज होना था.
मैंने त्योरियाँ चढ़ा रखी थी,
और जान बूझ कर,
नज़रंदाज़ किया उसकी हर हरकत को,
कुछ धमकियाँ भी दीं, कनखियों से,
वो मुस्कुरा के चल दिया,
मानो उसकी आँखों ने कहा हो,
ले तू आज फिर से हार गया.
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शौर्य जीत सिंह
१४/०१/२०१२
जमशेदपुर
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