Friday, January 13, 2012

झगड़ा

झगड़ा कई बरसों का था,
और निपटारा आज होना था.

मैंने त्योरियाँ चढ़ा रखी थी,
और जान बूझ कर,
नज़रंदाज़ किया उसकी हर हरकत को,
कुछ धमकियाँ भी दीं, कनखियों से,

वो मुस्कुरा के चल दिया,
मानो उसकी आँखों ने कहा हो,
ले तू आज फिर से हार गया.

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शौर्य जीत सिंह
१४/०१/२०१२
जमशेदपुर

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