Tuesday, March 13, 2012

खट्टे फ्लेवर

बक्सा एक,
किताबों से भरा हुआ,
बंद रखा है
कई महीनों से,
आलमारी के ऊपर कमरे में,

ख्याल कुछ कच्चे से,
बंद किये थे उनमे,
सोचा था खोलूँगा,
तो पक कर निकलेंगे,

अभी भी उतने ही खट्टे लगते हैं,
समझ का कोई भी स्वाद,
चढ़ा नहीं है उन पर,
इतने महीनों में,

सोचता हूँ,
फिर से बंद कर दूँ इन्हें बक्से में,
या खट्टा ही रहने दूँ,
कुछ नया फ्लेवर लायेंगे,
फ़ीके से शब्दों के अट-पटे से अर्थों में.

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शौर्य जीत सिंह
जमशेदपुर,
१३ मार्च 2012