काव्य-कुसुम
अम्बर भर काजल से बेहतर, मुठ्ठी भर सिन्दूर बनो.
Wednesday, June 11, 2014
त्रिवेणी
एक सपना टूट कर बिखरा ज़मीन पर
बावज़ूद सन्नाटों के कोई आवाज़ ना हुई.
पाँव में चुभे टुकड़े आज भी दुखते हैं.
नई दिल्ली, १२/०६/२०१४
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)