Saturday, June 13, 2015

मेरी अधूरी कविता

लाख कोशिशों के बाद भी,
तुम पूरी नहीं होती|
कभी मेरे ख़याल कुछ कम पड़ जाते हैं
जो तुम्हारे दर्द की गहराई तक जाते हों,
कभी कुछ अलफ़ाज़ नहीं मिलते
जो तुम्हारी ख़ुशी बयान कर सकते हो|
मुक़म्मल हासिल नहीं होती मुझको
टूटी फूटी,
कुछ बिखरी बिखरी सी,
कतरों में मिलती हो|

तुम्हारे कुछ टुकड़े जोड़ कर
मैंने अपनी ज़िन्दगी बनाई है
बिना तुम्हारे ज़ख्मों की दरारों के,
ज़िन्दगी मेरी भी अधूरी है|

शौर्य जीत सिंह
१२-१३ जून, २०१५
कोलकाता

Tuesday, June 09, 2015

किसी मोड़ पे मिल जाऊँ

आज भी वैसे लगते हो
जैसे बरसों पहले थे,
मुस्कान कुछ बदल सी गयी है तुम्हारी,
और मेरी पहचान |
अगर कुछ नहीं बदला,
तो हमारे भीतर का एक इन्सान,
जो आज भी,
तुमको,
तुम्हारी आँखों के रंग से पहचान लेता है |

बरसों बाद,
कभी किसी मोड़ पर मिल जाऊँ अगर
मेरे माथे की सिलवटों से, 
मेरी अधूरी कविताओं का दर्द तो गिन लोगे?

--
शौर्य जीत सिंह
09 जून २०१५, कोलकाता