सन्नाटे,
आसमान से टूट कर गिरते रहे,
और मैं
सपने के बिखरे काँचों को
सन्नाटों से जोड़ता रहा,
उस काँच में
शकल तो दिखती है
पर कई हिस्सों में बँटा हुआ सा लगता हूँ
टूटे हुए रिश्तों को जोड़ना भी कितना मुश्किल है |
शौर्य जीत सिंह
१५/१०/२०११
जमशेदपुर
Wednesday, October 19, 2011
Monday, October 03, 2011
हर बार
मैं,
उम्र के हर मुकाम पर,
थोडा थोडा,
नाकामयाब होता रहा,
कभी रोया,
कभी खीझा,
हर बार,
थोडा थोडा,
निराश होता रहा,
पर भूल गया शायद,
इस सब के बीच,
की हर बार,
थोडा थोडा,
परिपक्व होता रहा,
हर बार,
थोडा थोडा,
निखरता रहा सीखता रहा,
हर बार,
थोडा थोडा ही सही,
पर ऊपर उठता रहा ||
शौर्य जीत सिंह
०२-१०-२०११
जमशेदपुर
उम्र के हर मुकाम पर,
थोडा थोडा,
नाकामयाब होता रहा,
कभी रोया,
कभी खीझा,
हर बार,
थोडा थोडा,
निराश होता रहा,
पर भूल गया शायद,
इस सब के बीच,
की हर बार,
थोडा थोडा,
परिपक्व होता रहा,
हर बार,
थोडा थोडा,
निखरता रहा सीखता रहा,
हर बार,
थोडा थोडा ही सही,
पर ऊपर उठता रहा ||
शौर्य जीत सिंह
०२-१०-२०११
जमशेदपुर
Saturday, July 16, 2011
जब बिजली गुल हुई
बीती रात,
जब बिजली गुल हुई,
तो एहसास हुआ,
यह चाँद,
बादलों के बीच,
कितना खूबसूरत दिखता है,
बीती रात,
जब बिजली गुल हुई..!!
--
शौर्य जीत सिंह
१६ जुलाई २०११
जमशेदपुर
जब बिजली गुल हुई,
तो एहसास हुआ,
यह चाँद,
बादलों के बीच,
कितना खूबसूरत दिखता है,
बीती रात,
जब बिजली गुल हुई..!!
--
शौर्य जीत सिंह
१६ जुलाई २०११
जमशेदपुर
Wednesday, June 29, 2011
तुम और मैं
रिश्तों के कई पन्ने,
कई बार उलटे हैं,
पर उन पर लिखे अक्षर,
धुँधले नहीं हुए अब तक,
दोस्ती की कई परतें,
शरीर पर लगी चोट की तरह,
कई बार उचाड़ी है,
पर हर बार उन पर,
नई चमड़ी उग आती है,
इसीलिए,
लगता है,
तुम्हारे मेरे बीच,
जो पर्दा गिर गया है,
कल फिर से उठेगा ||
--
शौर्य जीत सिंह
२९/०६/२०११
जमशेदपुर
कई बार उलटे हैं,
पर उन पर लिखे अक्षर,
धुँधले नहीं हुए अब तक,
दोस्ती की कई परतें,
शरीर पर लगी चोट की तरह,
कई बार उचाड़ी है,
पर हर बार उन पर,
नई चमड़ी उग आती है,
इसीलिए,
लगता है,
तुम्हारे मेरे बीच,
जो पर्दा गिर गया है,
कल फिर से उठेगा ||
--
शौर्य जीत सिंह
२९/०६/२०११
जमशेदपुर
Monday, April 11, 2011
पहचान
मेरी गर्ल-फ्रेंड
कविता है,
नाम नहीं,
पहचान बता रहा हूँ.
यूँ तो सब कुछ
आँखों से कहती है,
मैं बस लफ़्ज़ों में सजा रहा हूँ,
मेरी गर्ल-फ्रेंड कविता है,
नाम नहीं,पहचान बता रहा हूँ.
कोरे पन्ने पर
स्याही सी सजती है
मैं बस सबको सुना रहा हूँ,
मेरी गर्ल-फ्रेंड कविता है,
नाम नहीं,पहचान बता रहा हूँ.
महीनों तक नहीं आती,
कभी जब रूठ जाती है,
तुम्हे नग्में सी लगती है,
मैं बस उसको मना रहा हूँ,
मेरी गर्ल-फ्रेंड कविता है,
नाम नहीं,पहचान बता रहा हूँ.
-- शौर्य जीत सिंह
१०/४/२०११
कविता है,
नाम नहीं,
पहचान बता रहा हूँ.
यूँ तो सब कुछ
आँखों से कहती है,
मैं बस लफ़्ज़ों में सजा रहा हूँ,
मेरी गर्ल-फ्रेंड कविता है,
नाम नहीं,पहचान बता रहा हूँ.
कोरे पन्ने पर
स्याही सी सजती है
मैं बस सबको सुना रहा हूँ,
मेरी गर्ल-फ्रेंड कविता है,
नाम नहीं,पहचान बता रहा हूँ.
महीनों तक नहीं आती,
कभी जब रूठ जाती है,
तुम्हे नग्में सी लगती है,
मैं बस उसको मना रहा हूँ,
मेरी गर्ल-फ्रेंड कविता है,
नाम नहीं,पहचान बता रहा हूँ.
-- शौर्य जीत सिंह
१०/४/२०११
Friday, February 18, 2011
छोटू
नाम तो कई थे उसके,
मैं,
अक्सर छोटू बुलाता था.
नुक्कड़ की चाय वाले का,
नया छोटू था.
खाकी निक्कर पहना करता था,
लम्बी थी उससे,
टाँगों तक पहुँचती थी,
शर्ट ठीक ठीक याद नहीं,
दो थीं शायद,
प्रमोशन भी हुआ था इधर उसका,
आज कल चाय भी बनाता था,
सोता भी उसी दुकान में,
एक कोने में था,
गए दंगो के बाद से दिखता नहीं,
दुकान पे चाय का स्वाद तो पहले सा ही है,
रंग कभी हरा तो कभी सिंदूरी लगता है..!!
शौर्य जीत सिंह
१५/०२/२०११
मैं,
अक्सर छोटू बुलाता था.
नुक्कड़ की चाय वाले का,
नया छोटू था.
खाकी निक्कर पहना करता था,
लम्बी थी उससे,
टाँगों तक पहुँचती थी,
शर्ट ठीक ठीक याद नहीं,
दो थीं शायद,
प्रमोशन भी हुआ था इधर उसका,
आज कल चाय भी बनाता था,
सोता भी उसी दुकान में,
एक कोने में था,
गए दंगो के बाद से दिखता नहीं,
दुकान पे चाय का स्वाद तो पहले सा ही है,
रंग कभी हरा तो कभी सिंदूरी लगता है..!!
शौर्य जीत सिंह
१५/०२/२०११
Tuesday, January 25, 2011
मूक मन की वेदना
बोलती हैं यह शिलाएं,
गा रही मन की व्यथाएँ,
पर नहीं सोचा किसी ने,
पर नहीं जाना किसी ने,
मूक मन की वेदनाएं!
बोलती हैं यह शिलाएं!!
पठारों की मूर्तियों में,
कौन कहता दिल नहीं
कल्पना सुख की दुखों की,
और मन चंचल नहीं है,
है नज़र तो देख ले,
वह छलकती जल बिन्दुकाएं,
बोलती हैं यह शिलाएं!!
शौर्य जीत सिंह
२००२
गा रही मन की व्यथाएँ,
पर नहीं सोचा किसी ने,
पर नहीं जाना किसी ने,
मूक मन की वेदनाएं!
बोलती हैं यह शिलाएं!!
पठारों की मूर्तियों में,
कौन कहता दिल नहीं
कल्पना सुख की दुखों की,
और मन चंचल नहीं है,
है नज़र तो देख ले,
वह छलकती जल बिन्दुकाएं,
बोलती हैं यह शिलाएं!!
शौर्य जीत सिंह
२००२
जीवन का चित्र बनाता हूँ
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!
ये पुष्प हमेशा कहते हैं,
जब मुझसे बातें करते हैं,
तू कष्ट क्लेश के शब्दों में,
आँसू में डूबा रहता है,
मैं कहता हूँ आँसू ही हैं,
संसृति से मुझे जोड़ते हैं,
आँसू से पन्नो को धो कर,
कविता में रंग सजाता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!
आँसू मन में उदगार बने,
और आँसू से संसार बने,
असहाय दीं की आँखों से,
निकले आँसू अंगार बने,
मानव ही अश्रु बहता है,
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है,
उस मानव मन की पीड़ा को,
जीवन का सार बताता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!
शौर्य जीत सिंह
२००२
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!
ये पुष्प हमेशा कहते हैं,
जब मुझसे बातें करते हैं,
तू कष्ट क्लेश के शब्दों में,
आँसू में डूबा रहता है,
मैं कहता हूँ आँसू ही हैं,
संसृति से मुझे जोड़ते हैं,
आँसू से पन्नो को धो कर,
कविता में रंग सजाता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!
आँसू मन में उदगार बने,
और आँसू से संसार बने,
असहाय दीं की आँखों से,
निकले आँसू अंगार बने,
मानव ही अश्रु बहता है,
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है,
उस मानव मन की पीड़ा को,
जीवन का सार बताता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!
शौर्य जीत सिंह
२००२
Sunday, January 23, 2011
आशा
एक और सुबह,
एक और चाय,
एक और सपना
एक और कोशिश,
एक और नतीजा
एक और हार
एक और शाम
एक और आंसू
एक और हताशा
एक और निराशा
एक और रात
एक और प्रण
कल फिर एक सुबह ..
फिर एक सपना..
शायद कल जश्न हो..
एक और आशा..
शौर्य जीत सिंह
२४-०१-२०११
एक और चाय,
एक और सपना
एक और कोशिश,
एक और नतीजा
एक और हार
एक और शाम
एक और आंसू
एक और हताशा
एक और निराशा
एक और रात
एक और प्रण
कल फिर एक सुबह ..
फिर एक सपना..
शायद कल जश्न हो..
एक और आशा..
शौर्य जीत सिंह
२४-०१-२०११
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