Tuesday, January 25, 2011

जीवन का चित्र बनाता हूँ

मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!

ये पुष्प हमेशा कहते हैं,
जब मुझसे बातें करते हैं,
तू कष्ट क्लेश के शब्दों में,
आँसू में डूबा रहता है,
मैं कहता हूँ आँसू ही हैं,
संसृति से मुझे जोड़ते हैं,
आँसू से पन्नो को धो कर,
कविता में रंग सजाता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!

आँसू मन में उदगार बने,
और आँसू से संसार बने,
असहाय दीं की आँखों से,
निकले आँसू अंगार बने,
मानव ही अश्रु बहता है,
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है,
उस मानव मन की पीड़ा को,
जीवन का सार बताता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!

शौर्य जीत सिंह
२००२

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