Saturday, March 28, 2020

बहुत कुछ और हो तुम

मैं गिन के रखता हूँ जिन पलों को सीने में
जैसे मेरी अब तक की
बस एक ही कमाई हो तुम
गर्मी से झुलसती मेरी सांसो की खातिर
ठंडक का वो पहला एहसास
जैसे आम के पेडो की
वो पहली बौर हो तुम

मैं जिसे खर्च नही करता किसी की खातिर
सिर्फ अपने अंदर समेट कर रखता हूँ]
बिना जिसके मेरी कोई अहमियत
कोई अभिमान, कोई पहचान नही
चुप्पी मेरे होठों की
और मेरे मन का शोर हो तुम

हाथ से छूट न जाये यही डरता हूँ
जिसको पाने के लिए
हर रोज़
कितनी ही दफा मरता हूँ
वो ख्वाब जिसका एक सिरा मेरा है
उसी ख्वाब का
एक दूसरा खूसूरत छोर हो तुम

मैं जो गिर जाऊं कभी भीड़ में
इस दुनिया की
बाहों में भर के मुझे झट से उठा लेती हो
धूप कितनी भी हो बनती हो तुम छाया मेरी
मेरी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में
फुरसत का
एक ठौर हो तुम

सिर्फ एक ख्वाब, याद और एहसास नही हो सुन लो
मेरे जीने के लिए
बहुत कुछ और हो तुम


--
शौर्य जीत सिंह
27 मार्च 2020, मुम्बई