शाम सुखाई छत पर रख के,
बारिश का मौसम ना था,
जाने कब किस छोर से बह कर,
तू घन बन मुझ पर छाई,
शाम से ले कर भोर भी भीगी,
उलझी दोनों इक हो कर,
सुलझाया तो बीच में उलझी,
रात गिरेगी आँगन में,
सुलझाऊं या रहने दूं अब,
उलझी सुलझी सब रातें,
उलझ गया मैं उलझ गया.!!!!
शौर्य जीत सिंह
३०-०४-२०१०
For you....from Me....!!!!