Thursday, April 19, 2012

त्रिवेणी

मुश्किल है ये कह पाना कि ज़िन्दगी किस पल में है,
ये बहती रहती है पलों के उतारों चढ़ावों के बीच,

हर पल यही सोच के जी लेता हूँ हिस्सा कोई भी ज़िन्दगी का छूट ना जाये.

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शौर्य जीत सिंह
मुंबई, १४/०४/२०१२

Monday, April 16, 2012

गुलज़ार हुआ

हवा आज फिर से दरवाजा धकेल कर घर में आ गयी,
अलबत्ता जिसके सफ़हे फड़फड़ा सके,ऐसी कोई किताब ना मिली, ,

वो कमरा तुम्हारे जाने के बाद से ही खाली है.

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शौर्य जीत सिंह
०५/०४/२०१२
जमशेदपुर
(गुलज़ार साहब के लिए)