Monday, April 16, 2012

गुलज़ार हुआ

हवा आज फिर से दरवाजा धकेल कर घर में आ गयी,
अलबत्ता जिसके सफ़हे फड़फड़ा सके,ऐसी कोई किताब ना मिली, ,

वो कमरा तुम्हारे जाने के बाद से ही खाली है.

 -
शौर्य जीत सिंह
०५/०४/२०१२
जमशेदपुर
(गुलज़ार साहब के लिए)

No comments: