हवा आज फिर से दरवाजा धकेल कर घर में आ गयी,
अलबत्ता जिसके सफ़हे फड़फड़ा सके,ऐसी कोई किताब ना मिली, ,
वो कमरा तुम्हारे जाने के बाद से ही खाली है.
-
शौर्य जीत सिंह
०५/०४/२०१२
जमशेदपुर
(गुलज़ार साहब के लिए)
अलबत्ता जिसके सफ़हे फड़फड़ा सके,ऐसी कोई किताब ना मिली, ,
वो कमरा तुम्हारे जाने के बाद से ही खाली है.
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शौर्य जीत सिंह
०५/०४/२०१२
जमशेदपुर
(गुलज़ार साहब के लिए)
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