Monday, January 30, 2012

कोणार्क में, पुल पर


समुद्र के नज़दीक वाले,
नदी के पुल पर,
हमेशा यही सोचता हूँ,
क्या होता होगा,
जब बहती हुई नदी,
मिलती होगी, समुद्र में,
अचानक से थम जाती होगी,
समुद्र के उथल-पुथल वाले पानी में,
या लोग कहते हैं,
एक लकीर सी पड़ जाती है,
निशान बन जाते हैं,
नदी के बहाव में.

बताना शायद मुश्किल होता होगा,
नदी कहाँ ख़त्म हुई,
और समुद्र की शुरुआत कहाँ हुई.

सोचता हूँ,
मिलूंगा तुझसे तो क्या होगा,
थम जाऊंगा,
या निशान पड़ेगा मुझ पर.

--
शौर्य जीत सिंह
पुरी से कोणार्क के बीच- २७/०१/२०१२
जमशेदपुर - ३०/०१/२०१२

Friday, January 20, 2012

सूखे फूल

एक किताब है,
कुछ सौ-इक पन्नों की,
पढ़ा नहीं उसको कभी पर,
हमेशा सिरहाने रख कर सोता हूँ,
जिन शब्दों के मायने नहीं मालूम,
महसूस करता हूँ उनको,

बिखरी हुई पत्तियों वाला,
एक सूखा फूल है उसमें,
पड़ा रहता है खामोश सा,
उन्ही दो पन्नों के बीच,
खुशबू तो नहीं देता,
पर उससे ही महकता रहता हूँ,
रात भर.

--
शौर्य जीत सिंह
२०-०१-२०१२, जमशेदपुर

Friday, January 13, 2012

झगड़ा

झगड़ा कई बरसों का था,
और निपटारा आज होना था.

मैंने त्योरियाँ चढ़ा रखी थी,
और जान बूझ कर,
नज़रंदाज़ किया उसकी हर हरकत को,
कुछ धमकियाँ भी दीं, कनखियों से,

वो मुस्कुरा के चल दिया,
मानो उसकी आँखों ने कहा हो,
ले तू आज फिर से हार गया.

--
शौर्य जीत सिंह
१४/०१/२०१२
जमशेदपुर

तू आदत है

तू वो आदत है,
जो छूटती नहीं,
तू वो सपना है,
जिसे खुली आँखों से देखता हूँ,
तू वो धुन है,
जिसे हर बार,
अकेले में गुनगुनाता हूँ,
तू वो आहट है,
जो कानों से ओझल नहीं होती,
तू वो तन्हाई है,
जो मेले सी लगती है,
तू वो खुशबू है,
जिससे लोग मुझे पहचान लेते हैं,
तू वो तकिया है,
जिससे चेहरा ढक कर,
कभी भी रो लेता हूँ,
तू वो कोना है दिल का,
जो गीला रहता है, हर वक़्त,

हाँ, तू वही एक आदत है,
जो छूटती नहीं!

--
शौर्य जीत सिंह
०१/११/२०११
जमशेदपुर
जो बातें कभी कह ना पाऊँ,
उन्हें खुद से समझ लेना तुम,

ज़रा कच्चा हूँ बोलने में - इसीलिए लिख लेता हूँ!!

शौर्य जीत सिंह
०४/११/२०११
जमशेदपुर
कौन कहता है दर्द की इंतेहा होती है !!
यूँ तो तेरी हर अगली मुलाक़ात से पहले अनगिनत पल होते हैं !!

--
शौर्य जीत सिंह
२६/११/२०११
जमशेदपुर