रिश्तों के कई पन्ने,
कई बार उलटे हैं,
पर उन पर लिखे अक्षर,
धुँधले नहीं हुए अब तक,
दोस्ती की कई परतें,
शरीर पर लगी चोट की तरह,
कई बार उचाड़ी है,
पर हर बार उन पर,
नई चमड़ी उग आती है,
इसीलिए,
लगता है,
तुम्हारे मेरे बीच,
जो पर्दा गिर गया है,
कल फिर से उठेगा ||
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शौर्य जीत सिंह
२९/०६/२०११
जमशेदपुर