Thursday, February 23, 2012

त्रिवेणी


खिड़कियाँ खुली रह गयीं बीती रात घर की,
हवा ठंडा कर गयी मुझको तमाम कोशिशों के बाद भी,

अक्ल की कई तहों के नीचे था - मन ठंडा ना हुआ.

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शौर्य जीत सिंह
२२/०२/२०१२
जमशेदपुर

Tuesday, February 21, 2012

सफ़र


ये दुनिया बहुत छोटी है,
लोग चौबीस घंटों में अमरीका पहुँच जाया करते हैं,
तुमसे तो फिर,
टूटे ही सही,
दिल के कुछ तार भी बंधे हैं,
कहीं तो मिलोगे,
कोई पहाड़ी,
कोई झरना,
कोई मिट्टी का टीला,
सूना सा होगा,
कहीं तो होगा,
जहाँ सफ़र ख़तम होगा मेरा.

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शौर्य जीत सिंह
०५/०२/२०१२
गंगटोक

Sunday, February 12, 2012

शकलों के आईने

शकलें आईने में दिखतीं,
तो लोगों में शर्म होती,
लिहाज़ होता,
ग़ैरत होती,

शकलें तो आँखों में दिखती हैं,
इसीलिए,
स्नेह से भरी चार आँखें,
मिलते ही,
झुक जाती हैं.

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शौर्य जीत सिंह
गंगटोक, ०७/०२/२०१२

Saturday, February 11, 2012

त्रिवेणी

१. रास्ता कुछ सौ किलोमीटर का था, कई पुल थे उनपे,
    हम हर बार अपना रास्ता बदल कर तीस्ता के दायें बाएं होते रहे,

    कम्बख्त तीस्ता ने अपना रास्ता एक बार भी नहीं बदला हमारे लिए.

२. बड़े कठोर होते हैं ये पहाड़ भी,
    सदियों से अडिग, सब कुछ सहते हुए,

    जब दर्द हद से गुज़र जाये, तो इनसे भी झरने छूट जाया करते हैं.

३. तुम ढुलकते रहना मेरे कंधे पर,
    मैं सम्हालता रहूँगा हर बार तुमको,

   मैं लड़खड़ाउंगा नहीं, जब तक साथ हो तुम.

४. नज़रें मिला कर, झुका कर, झगड़ कर, मुस्कुरा कर,
    हम बहुत देर तक एक ही दिशा में साथ चलते रहे,

    जाने मैं उसके पीछे था या वो मेरे.

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शौर्य जीत सिंह
०५-०७/०२/२०१२
जलपाईगुड़ी, गंगटोक,लाचुंग, यूमथांग