Saturday, March 04, 2017

मुझ सा तुम सा

ये जो तुम थोड़े से मुझ से हो गए हो,
और ये जो मैं भी,
थोड़ा ही सही,
तुम सा हो गया हूँ। 

ये जो तुम,
थोड़े बेफिक्र हो गए हो,
और जो मैं थोड़ा फिक्रमंद हो गया हूँ। 

ये जो तुम कुछ संजीदा हो गए ,
और जो मैं थोड़ी शरारतें करने लगा हूँ। 

ये जो तुमने नाक पे थोड़ा गुस्सा चढ़ा लिया,
और जो मैं चहकने लगा हूँ। 

ये जो तुमने हल्के से मुस्कुराना सीख लिया,
और जो मैं दिल खोल के,
हँसने लगा हूँ। 

ये जो तुम कुछ साँवले हो गए हो,
और जो मैं चमकने लगा हूँ। 

ये जो तुम मुझ से और मैं तुम सा हो गया हूँ,
ये जो मैंने तुमको अपनाया है,
और तुमने मुझे आत्मसात किया है।,
तुम चाहो तो कुछ नाम दे दो इसको 
मेरे लिए ये अदला बदली ही काफी है। 

शौर्य जीत सिंह 
६ फरवरी , २०१७ 
कोलकाता 

धुंध

ये जो हल्की हल्की सी धुंध है,
बहुत कुछ तुम सी लगती है।
नज़र जो आता है इसमें,
हमेशा वो नहीं होता,
कि जैसे बातें तुम अक्सर,
छुपा के मुझसे रखते हो,
उसी तरह ये हल्की धुंध भी, 
बोले बिना कुछ भी,
ना जाने क्या नहीं कहती। 

कि इसके पर क्या है,
हर दफा मैं पढ़ नहीं पाता,
मगर जो इक सुकूँ है,
धुंध की खामोश ठिठुरन में,
तेरे आगोश में जैसे जहाँ से,
मैं बड़ा महफूज़ रहता हूँ। 

जो हल्की धुंध है तुम सी,
बड़ी अपनी सी लगती है 

शौर्य जीत सिंह 
२० दिसंबर, २०१६ 
आजमगढ़