याद है तुमको,
वो बारिशों के दिन,
जब मौसम की पहली झमाझम बारिश के बाद,
मटमैले पत्तों वाला बूढा बरगद,
अपने पत्तों से गर्द हटा कर,
कैसे हरा हो जाता था,
फिर से लहलहा जाता था,
और एहसास करा जाता था,
हमें,
अपने होने का.
यूँ ही कभी,
बिन बताये ,
तुम आओ,
और मैं लहक जाऊँ ,
तो शायद एहसास कर पाओगे,
तुम भी,
मेरे होने का.
--
शौर्य जीत सिंह
१६.०६.२०१६, कोलकाता
वो बारिशों के दिन,
जब मौसम की पहली झमाझम बारिश के बाद,
मटमैले पत्तों वाला बूढा बरगद,
अपने पत्तों से गर्द हटा कर,
कैसे हरा हो जाता था,
फिर से लहलहा जाता था,
और एहसास करा जाता था,
हमें,
अपने होने का.
यूँ ही कभी,
बिन बताये ,
तुम आओ,
और मैं लहक जाऊँ ,
तो शायद एहसास कर पाओगे,
तुम भी,
मेरे होने का.
--
शौर्य जीत सिंह
१६.०६.२०१६, कोलकाता
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