कितनी ही दफ़ा
हर रोज़,
मिलता बिछड़ता हूँ तुझसे,
बिन बरसे बदल सा,
बस छू कर गुज़रता हूँ तुझको,
कुछ रुकता नहीं तेरे बिन,
तो सब कुछ चलता भी नहीं,
भटकता रहता हूँ,
बेवजह,
ठोकरें खा कर,
सँभलता भी नहीं ,
ठहरता हूँ,
ढूंढता हूँ,
इंतज़ार करता हूँ,
हर रोज़,
मिल कर बिछड़ने का,
और बिछड़ कर मिलने का,
अधूरा हूँ,
पूरा होने की आस में,
ज़िन्दगी के,
उसी एक कतरे की तलाश में ,
कितनी ही दफ़ा
हर रोज़,
मिलता बिछड़ता हूँ तुझसे|
शौर्य जीत सिंह
२९ सितम्बर, २०१८
मुंबई
हर रोज़,
मिलता बिछड़ता हूँ तुझसे,
बिन बरसे बदल सा,
बस छू कर गुज़रता हूँ तुझको,
कुछ रुकता नहीं तेरे बिन,
तो सब कुछ चलता भी नहीं,
भटकता रहता हूँ,
बेवजह,
ठोकरें खा कर,
सँभलता भी नहीं ,
ठहरता हूँ,
ढूंढता हूँ,
इंतज़ार करता हूँ,
हर रोज़,
मिल कर बिछड़ने का,
और बिछड़ कर मिलने का,
अधूरा हूँ,
पूरा होने की आस में,
ज़िन्दगी के,
उसी एक कतरे की तलाश में ,
कितनी ही दफ़ा
हर रोज़,
मिलता बिछड़ता हूँ तुझसे|
शौर्य जीत सिंह
२९ सितम्बर, २०१८
मुंबई