Wednesday, October 19, 2011

सन्नाटे

सन्नाटे,
आसमान से टूट कर गिरते रहे,
और मैं
सपने के बिखरे काँचों को
सन्नाटों से जोड़ता रहा,

उस काँच में
शकल तो दिखती है
पर कई हिस्सों में बँटा हुआ सा लगता हूँ

टूटे हुए रिश्तों को जोड़ना भी कितना मुश्किल है |

शौर्य जीत सिंह
१५/१०/२०११
जमशेदपुर

Monday, October 03, 2011

हर बार

मैं,
उम्र के हर मुकाम पर,
थोडा थोडा,
नाकामयाब होता रहा,
कभी रोया,
कभी खीझा,
हर बार,
थोडा थोडा,
निराश होता रहा,
पर भूल गया शायद,
इस सब के बीच,
की हर बार,
थोडा थोडा,
परिपक्व होता रहा,
हर बार,
थोडा थोडा,
निखरता रहा सीखता रहा,
हर बार,
थोडा थोडा ही सही,
पर ऊपर उठता रहा ||

शौर्य जीत सिंह
०२-१०-२०११
जमशेदपुर