Sunday, October 13, 2019

त्रिवेणी

ख़ामोश रह कर भी बहुत कुछ कह जाने का अंदाज़ मेरा ,
और तुम्हारा सब कुछ बिना पलकें झपकाए पढ़ लेना,

ये ख़ामोशी हम दोनों के सिवाय और कोई समझता भी तो नहीं।

-
शौर्य जीत सिंह
२७ सितम्बर २०१९, मुंबई


Saturday, September 07, 2019

उसने

बारहा मुझसे गले मिल के हँसा करता था,
क्यों मेरी पीठ का खंज़र न निकाला उसने।

उसकी चुप्पी में भी आवाज़ हुआ करती थी,
जब वो दूर गया कुछ नही बोला उसने।

चर्चा-ए-आम रहा हर वो फ़साना अपना,
क्यूँ गया छोड़ कर ये राज़ न खोला उसने।

मेरी परवाज़ में वो साथ रहा रूह बन कर,
जब गिरा गर्त में तो क्यों न सम्हाला उसने।

चंद लम्हों की ही यारी थी एक अरसे से
साथ चलने का कोई शौक न पाला उसने।

दिल मे जो टीस रही वो भी एक तरफ़ा रही,
एक कतरा भी तो मरहम का ना डाला उसने।
...


शौर्य जीत सिंह
मुम्बई, 15 अगस्त 2019

Monday, July 15, 2019

कभी यूँ भी बरसो

कभी यूँ भी बरसो,
कि मन भीगे।

गलियों और सडकों का सूनापन,
जब मुझसे हो कर गुज़रे,
तो तुम्हारे टिप टिप की खनक से,
गुलज़ार हो कर चहके।
कभी यूँ भी बरसो,
कि मन भीगे।

पेड़ों के पत्तों पर जमी धूल,
जब मेरी आँखों में गिरने को हो,
तुम्हारे हल्के बहाव में,
सुनहरी हो कर बिखरे।
कभी यूँ भी बरसो,
कि मन भीगे।

ज़मीन की ये कठोर तपन,
जब मेरी एड़ियाँ पिघलाने को हो,
तुम्हारी ठंडी बूंदों संग,
कुछ शर्मा के पिघले।
कभी यूँ भी बरसो,
कि मन भीगे।

हवाओं के गर्म थपेड़े,
जब मेरी साँसों में घुलने लगे,
तुम्हारी बौछारों से मिल कर,
पूरी कायनात में महके,
कभी यूँ भी बरसो,
कि मन भीगे।

कभी यूँ भी बरसो,
कि मन भीगे।

-
शौर्य जीत सिंह
३० जून २०१९, मुम्बई

Sunday, March 17, 2019

आवाज़ बाकी है

हसरतों के आसमान को,
हैसियत से कुछ वास्ता नहीं होता,
जो इरादों की उड़ान को रोक सके,
ऐसा कोई रास्ता नहीं होता।
जो चलते चलते थोड़ा सा ठहर गया हूँ मैं,
ज़रा नज़रें मिला कर देखो,
थोड़ा और निखर गया हूँ मैं,
माना की मंज़िल से कुछ पहले,
एक पल को ठिठका ज़रूर हूँ,
मगर ये कैसे जाना तुमने
की थक हार गया हूँ मैं।

अभी मेरी आखिरी परवाज़ बाकी है,
अभी मत मिटाना मुझे,
दौड़ने वालो की फेहरिश्त से,
जब तक एक कतरा भी मुझमे,
आवाज़ बाकी है,
एक साँस बाकी है।

कोलकाता
२६. १०. २०१६