Saturday, September 07, 2019

उसने

बारहा मुझसे गले मिल के हँसा करता था,
क्यों मेरी पीठ का खंज़र न निकाला उसने।

उसकी चुप्पी में भी आवाज़ हुआ करती थी,
जब वो दूर गया कुछ नही बोला उसने।

चर्चा-ए-आम रहा हर वो फ़साना अपना,
क्यूँ गया छोड़ कर ये राज़ न खोला उसने।

मेरी परवाज़ में वो साथ रहा रूह बन कर,
जब गिरा गर्त में तो क्यों न सम्हाला उसने।

चंद लम्हों की ही यारी थी एक अरसे से
साथ चलने का कोई शौक न पाला उसने।

दिल मे जो टीस रही वो भी एक तरफ़ा रही,
एक कतरा भी तो मरहम का ना डाला उसने।
...


शौर्य जीत सिंह
मुम्बई, 15 अगस्त 2019

No comments: