Tuesday, January 25, 2011

कई बार उछाला है तेरी यादों को हवा में,
अश्को की नमी कुछ तो सूखेगी,

कम्बख्त हर बार और ओस लपेटे लौट आती है!!

मूक मन की वेदना

बोलती हैं यह शिलाएं,
गा रही मन की व्यथाएँ,
पर नहीं सोचा किसी ने,
पर नहीं जाना किसी ने,
मूक मन की वेदनाएं!
बोलती हैं यह शिलाएं!!

पठारों की मूर्तियों में,
कौन कहता दिल नहीं
कल्पना सुख की दुखों की,
और मन चंचल नहीं है,
है नज़र तो देख ले,
वह छलकती जल बिन्दुकाएं,
बोलती हैं यह शिलाएं!!

शौर्य जीत सिंह
२००२

जीवन का चित्र बनाता हूँ

मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!

ये पुष्प हमेशा कहते हैं,
जब मुझसे बातें करते हैं,
तू कष्ट क्लेश के शब्दों में,
आँसू में डूबा रहता है,
मैं कहता हूँ आँसू ही हैं,
संसृति से मुझे जोड़ते हैं,
आँसू से पन्नो को धो कर,
कविता में रंग सजाता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!

आँसू मन में उदगार बने,
और आँसू से संसार बने,
असहाय दीं की आँखों से,
निकले आँसू अंगार बने,
मानव ही अश्रु बहता है,
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है,
उस मानव मन की पीड़ा को,
जीवन का सार बताता हूँ,
मैं कवि हूँ,
युग का दृष्टा हूँ,
जीवन का चित्र बनाता हूँ!!

शौर्य जीत सिंह
२००२

Sunday, January 23, 2011

आशा

एक और सुबह,
एक और चाय,
एक और सपना
एक और कोशिश,
एक और नतीजा
एक और हार
एक और शाम
एक और आंसू
एक और हताशा
एक और निराशा
एक और रात
एक और प्रण
कल फिर एक सुबह ..
फिर एक सपना..
शायद कल जश्न हो..
एक और आशा..

शौर्य जीत सिंह
२४-०१-२०११