Tuesday, January 25, 2011

मूक मन की वेदना

बोलती हैं यह शिलाएं,
गा रही मन की व्यथाएँ,
पर नहीं सोचा किसी ने,
पर नहीं जाना किसी ने,
मूक मन की वेदनाएं!
बोलती हैं यह शिलाएं!!

पठारों की मूर्तियों में,
कौन कहता दिल नहीं
कल्पना सुख की दुखों की,
और मन चंचल नहीं है,
है नज़र तो देख ले,
वह छलकती जल बिन्दुकाएं,
बोलती हैं यह शिलाएं!!

शौर्य जीत सिंह
२००२

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