Monday, July 09, 2012

रंग

कुछ रंग धीरे चढ़ते हैं,
और कुछ चढ़ते ही नहीं,
मुझ पर सामाजिकता का रंग,
कुछ धीरे चढ़ा,
और समझ का,
कभी चढ़ा ही नहीं,
कोशिश कई बार की,
तुझे खुद से अलग करने की,
खैर,
कुछ रंग उतरते भी तो नहीं |

शौर्य जीत सिंह
०९/०७/२०१२, जमशेदपुर

Thursday, July 05, 2012

लिबास


उदासियाँ,
एक पोटली में बाँध कर,
सँजो कर रखी है,
पहन लूँगा आँखों पर,
जब ज़रूरत होगी,
रोने की |

खुशियाँ,
किसी छोटे से गट्ठर में हैं,
संदूक में सम्हाल के रखी हैं,
होठों पे पहन लुंगा,
उसको भी,
जब ज़रूरत होगी,
हँसने की |

गुस्सा भी,
किसी पुरानी चादर में लपेट कर,
पड़ा होगा इन सब के ऊपर,
की आसानी से मिल जाए,
जब ज़रूरत हो,
खीझने की |

ये सारे जज़्बात,
लिबास हैं उस मन के,
जिसके मरने की खबर,
मुझे भी ज़रा देर से लगी ||

--
शौर्य जीत सिंह
जमशेदपुर, २९/०६/२०१२