Sunday, October 24, 2010

अग्निपथ रचता चला हूँ..!!

भावना का वेग ले कर,
शब्द शोलों में दबा कर,
ध्येय का अविराम राही,
साथ कंटक ले चला हूँ,
अग्निपथ रचता चला हूँ |

ओज कण कण में समां कर,
पथिक को पाथेय दे कर,
कर प्रखर वाणी सभी की,
साथ सबको ले चला हूँ,
अग्निपथ रचता चला हूँ |

कष्ट का ही अस्त्र ले कर,
ज्वार हृदयों में उठा कर,
भारती माँ का पुजारी,
छंद माला कह चला हूँ,
अग्निपथ रचता चला हूँ |

शौर्य जीत सिंह
२१-जुलाई-२००४