Sunday, March 17, 2019

आवाज़ बाकी है

हसरतों के आसमान को,
हैसियत से कुछ वास्ता नहीं होता,
जो इरादों की उड़ान को रोक सके,
ऐसा कोई रास्ता नहीं होता।
जो चलते चलते थोड़ा सा ठहर गया हूँ मैं,
ज़रा नज़रें मिला कर देखो,
थोड़ा और निखर गया हूँ मैं,
माना की मंज़िल से कुछ पहले,
एक पल को ठिठका ज़रूर हूँ,
मगर ये कैसे जाना तुमने
की थक हार गया हूँ मैं।

अभी मेरी आखिरी परवाज़ बाकी है,
अभी मत मिटाना मुझे,
दौड़ने वालो की फेहरिश्त से,
जब तक एक कतरा भी मुझमे,
आवाज़ बाकी है,
एक साँस बाकी है।

कोलकाता
२६. १०. २०१६