ये जो हल्की हल्की सी धुंध है,
बहुत कुछ तुम सी लगती है।
नज़र जो आता है इसमें,
हमेशा वो नहीं होता,
कि जैसे बातें तुम अक्सर,
छुपा के मुझसे रखते हो,
उसी तरह ये हल्की धुंध भी,
बोले बिना कुछ भी,
ना जाने क्या नहीं कहती।
कि इसके पर क्या है,
हर दफा मैं पढ़ नहीं पाता,
मगर जो इक सुकूँ है,
धुंध की खामोश ठिठुरन में,
तेरे आगोश में जैसे जहाँ से,
मैं बड़ा महफूज़ रहता हूँ।
जो हल्की धुंध है तुम सी,
बड़ी अपनी सी लगती है
शौर्य जीत सिंह
२० दिसंबर, २०१६
आजमगढ़
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