Saturday, February 11, 2012

त्रिवेणी

१. रास्ता कुछ सौ किलोमीटर का था, कई पुल थे उनपे,
    हम हर बार अपना रास्ता बदल कर तीस्ता के दायें बाएं होते रहे,

    कम्बख्त तीस्ता ने अपना रास्ता एक बार भी नहीं बदला हमारे लिए.

२. बड़े कठोर होते हैं ये पहाड़ भी,
    सदियों से अडिग, सब कुछ सहते हुए,

    जब दर्द हद से गुज़र जाये, तो इनसे भी झरने छूट जाया करते हैं.

३. तुम ढुलकते रहना मेरे कंधे पर,
    मैं सम्हालता रहूँगा हर बार तुमको,

   मैं लड़खड़ाउंगा नहीं, जब तक साथ हो तुम.

४. नज़रें मिला कर, झुका कर, झगड़ कर, मुस्कुरा कर,
    हम बहुत देर तक एक ही दिशा में साथ चलते रहे,

    जाने मैं उसके पीछे था या वो मेरे.

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शौर्य जीत सिंह
०५-०७/०२/२०१२
जलपाईगुड़ी, गंगटोक,लाचुंग, यूमथांग

1 comment:

Jawed said...
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