Friday, February 18, 2011

आग लिखी थी कुछ पन्नो पर,
आज सिर्फ कालिख के निशाँ से बाकी हैं,

दो बूँदें आंसू की गिरी थी एक मर्तबा उनपे!!


शौर्य जीत सिंह
१५/०२/२०११

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