आज भी वैसे लगते हो
जैसे बरसों पहले थे,
मुस्कान कुछ बदल सी गयी है
तुम्हारी,
और मेरी पहचान |
अगर कुछ नहीं बदला,
तो हमारे भीतर का एक इन्सान,
जो आज भी,
तुमको,
तुम्हारी आँखों के रंग से पहचान लेता
है |
बरसों बाद,
कभी किसी मोड़ पर मिल जाऊँ
अगर
मेरे माथे की सिलवटों से,
मेरी अधूरी कविताओं का दर्द
तो गिन लोगे?
--
शौर्य जीत सिंह
09 जून २०१५, कोलकाता
No comments:
Post a Comment