काव्य-कुसुम
अम्बर भर काजल से बेहतर, मुठ्ठी भर सिन्दूर बनो.
Wednesday, August 29, 2012
त्रिवेणी
सभी सपनों के सौदे कौड़ियों के दाम कर आया मैं
,
नीदें भी बेंच डाली तुमसे दूर होने की जल्दी में
,
आज कल मेरे बिस्तर पर सिलवटें पड़ जाया करती हैं.
--
शौर्य जीत सिंह
२७ अगस्त २०१२
जमशेदपुर
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