Sunday, May 13, 2012

धुँधले रिश्ते

पुरानी किसी किताब के,
धुँधले हो चुके शब्दों के,
मायने नहीं बदले अब तक,
हाँ अब पढ़े नहीं जाते,
इसलिए याद कम रहते हैं |

पुराने दोस्त,
जिनसे मिलना नहीं होता,
अहमियत उनकी,
अभी उतनी ही है,
हाँ अब रोज़ बातें नहीं करते |

ऐसे और भी कई रिश्ते हैं,
जो समय की रेत पर,
पुरानी किताब के,
धुँधले शब्दों की तरह,
रोज़ धुँधले हो रहे हैं,
पर हमेशा सबसे ख़ास बने रहते हैं |

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शौर्य जीत सिंह
१२/०५/२०१२
दिल्ली

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