Monday, May 07, 2012

याद आएगा

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|

रात को जगना सोचूंगा या,
चलना संग याद आएगा
,
याद आएगा सपने बुनना
,
या झूठे वादे मेरे
,
तेरी भीगी पलकें सोचूँ
,
या हँसना याद आएगा
|

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|

साँसों की आवाज़ सुनूँ फिर,
या अपने गुस्सम-गुस्से
,
बिना बात के लम्बे झगड़े
,
चुप होना याद आएगा
,
मेरी कविता के मतलब को
,
नहीं समझ पाना तेरा
,

मेरा फिर खुश हो कर तुझको,
समझाना याद आएगा |

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|



क्या सोचूँ क्या मिस कर दूँ इनमे,
लिस्ट बहुत ये लम्बी है,
भूला कुछ तो झगड़ोगे फिर
,
हाँ ये भी याद आएगा
|

तेरी यादों से रौशन हूँ,
और नहीं कुछ पास मेरे
,
और ना हो कुछ हासिल मुझको
,
बस ये संग रह जाएगा
|

सोचता हूँ तुझे याद करूंगा,
तो क्या क्या याद आएगा
|

--
शौर्य जीत सिंह,
०४/०५/२०१२

दिल्ली से जयपुर तक


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