एक रात चुनी अंधियारी सी ,आँखों में थी कुछ काली सी
ना सपने थे ,ना आंसू थे ,ना अंगडाई ना काजल था ...
ना रिश्ते थे.ना बंधन था ,ना सूरज उगने का डर था
ना धड़कन थी ,ना साँसे थी , ना राह देखती घडियां थी
एक रात चुनी जो अपनी थी,पगलाई सी तन्हाई सी..
एक रात जिसे मैं जी ना सका,बस बालिश्तों से बाँधी है ...
सोचा है एक दिन जी लूँगा,वो रात जिसे मैं जी ना सका .
January 2009
No comments:
Post a Comment