जब सूरज आसमानी होगा
और आसमान लाल
रात सिन्दूरी रंग सी घर कि छत पर टपकेगी
और सवेरा कालिख सा
हर आंख में सजेगा
चांद को कटोरे मे रखे हर भिखारी चुप चाप बैठा होगा
और पतझड के सूखे पत्ते बेल बनकर
सबसे ऊंची मीनार पे बैठेंगे
चलेंगे लोग पनी के जमे समन्दर पे
और धरती दल दल से बिखर जायेगी
हर कदम की आहट पे
जब रगो मे बहता खून
ठेले पे रखे बर्फ़ की सिल्ली बन जम जायेगा
और रिसेगा
हर पल मेरे जिस्म से
जब चिमनियो से निकला धुआं
बहता हुआ घर क रोशनदनो क मुंह बन्द कर देगा
और थिरकती हुई बारिश कि बून्दें
किसी खिड्की कि सूनी दरार मे चुपचाप सो जायेगी
जब आंखो मे गरम पानी क झरना नहीं होगा
बल्कि वो खूनी लाल सांसें लेगी
और सीने मे रखा दिल
चुपचाप
मगर
मेज़ पे रखी एक चिट्ठी
धड्कनों सी फड्फडाएगी
यकीन है मुझे
उस वक्त
मिलूंगा मैं तुझसे
February 2007
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