Tuesday, October 24, 2006

Woh Bikhari Saanson Ki ladiyan........

वो बिखरी सांसों की लड्रियां

सांसें गिनकर लड्री बनायी,
धड्रकन के कुछ टुकड्रे जोड्रे,
तेरी कुछ बिखरी सांसें थी,
मेरी भी उलझी धड्रकन थी,
आंखों में धुंधली सी दुनिया,
सीने में सोये अरमां थे,
टूटे फूटे इस सपने में
जो भी था
सब कुछ अपना था.

क्यूं वापस लेने आयी हो
उन बिखरी सांसों कि लड्रियां,
इन लड्रियों में उलझी धड्र्कन
शायद तुझ तक भी पहुंचेगी,
देखो,इन्हें पिरो के रखना
तेरी सांसें, मेरी धड्रकन.

जब भी ये लड्रियां टूटेंगी,
वो धड्रकन भी थम जायेगी,
और थमेंगे वो सपने भी
टूटे फूटे जिस सपने में
जो कुछ था
सब कुछ अपना था.


18.10.2006
Shaurya Jeet Singh

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