Tuesday, October 10, 2006

पल

याद हैं
मुझे वो पल,

तुम्हारी पलकों की वो झालर
उसका जलना
और शरमा के बुझ जाना,
तुम्हारी सांसो के
गर्म थपेडों से
मेरे पोर पोर का
मोम सा पिघल जाना,
तुम्हारे खुश्क कंपकंपाते होठों का
मेरे सीने पे आयतें लिखना,
तुम्हारे दांतों की चुभन का
मेरे होठों पे रंग सजाना,
और तुम्हारी जुल्फ़ों का
मेरे चेहरे पे बिछा पश्मीना,
तुम्हारा मुझे इस संजीदगी से देखना
और मेरे कुछ पूछते ही
तुम्हारा अमावस के मुरझाये चांद सा
मेरे सीने मे छुप जाना.
और
तुम्हारी आंखों से
मेरे चेहरे पे गिरी,
शबनम की वो सात बून्दें


याद हैं मुझे वो पल,
पर ये पल
थमते नहीं
रुकते नहीं
ठहरते नहीं
नदी के बहते पानी से
चलते चले जाते हैं
और इन्हें दिल में संजोये,
मैं भी इनके साथ चला जा रहा हूं
जानता हूं मैं कि
तू समन्दर है
मुझ तक नही आयेगी,
तभी चला जा रहा हूं
शायद मैं ही पहुंच जाऊं कभी तुझ तक,

मेरे होठों से तुम्हारे होठों पे लिखी ईबारतें,
जो शायद मिट भी गई हों
तुम्हें याद तो होंगी ना.

शौर्य जीत सिंह
०२/०७/२००६

I dedicate my this poem to my someone special.hope some day I'll get her back!!!!

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