बादलों के पार
चाँद की मद्धम रौशनी से रोशन
एक टुकड़ा है ज़मीन का
कभी कहा नहीं तुमसे,
पर बरसों पहले तुम्हारी खातिर ही,
छुपाया था उसको वहाँ पर,
बरसों बाद वहीँ मिलूंगा तुमको।
शौर्य जीत सिंह
१८ फरवरी, २०१४
गाज़ियाबाद
चाँद की मद्धम रौशनी से रोशन
एक टुकड़ा है ज़मीन का
कभी कहा नहीं तुमसे,
पर बरसों पहले तुम्हारी खातिर ही,
छुपाया था उसको वहाँ पर,
बरसों बाद वहीँ मिलूंगा तुमको।
शौर्य जीत सिंह
१८ फरवरी, २०१४
गाज़ियाबाद
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