आँखों में उगाया ख्वाब कभी,
सींचा अपने हर आँसू से,
ढांपा पलकों के छप्पर से,
जब जेठ दुपहरी धूप लगी...
इक दिन आया आँसू सूखे
पलकें बोझिल पर नींद नहीं
वो ख्वाब कहीं मुरझाया सा
आँखों में लाली सा खिंच कर ,
बेरंग हुआ और ख़त्म हुआ
जो सजता था इन आँखों में....
August 2009
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