काव्य-कुसुम
अम्बर भर काजल से बेहतर, मुठ्ठी भर सिन्दूर बनो.
Sunday, November 01, 2009
रिश्ते
पिघलते हुए रिश्तों से.......
उम्मीदो की एक लौ........
जला रखी है.......
सोचता हूं......
उम्मीदें बुझा कर बचा लूं इस रिश्ते को......
या कायम रखूं उम्मीदें........
रिश्तों के गर्द बन .......
उड्र जाने तक.........
July 2007
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