दिवाली के दिन भी,
घर के कुछ कोने,
यूँ सूने रह जाते हैं,
मानो नींव रखने वाला,
शुरुआत से ही उन्हें भूल गया हो,
कभी शिकायत नहीं की उन कोनों ने,
वे अपनी उसी जगह में,
ख़ामोश पड़े रहते हैं,
इस उम्मीद में,
कि उनके ऊपर की छत,
कभी समझ उनकी अहमियत को,
कुछ रास्ता देगी,
ताकि रोशनदानों से रंग छलकें,
कि उन तक भी धूप पहुंचे।
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शौर्य जीत सिंह
13 जनवरी 2013, जमशेदपुर