सन्नाटे,
आसमान से टूट कर गिरते रहे,
और मैं
सपने के बिखरे काँचों को
सन्नाटों से जोड़ता रहा,
उस काँच में
शकल तो दिखती है
पर कई हिस्सों में बँटा हुआ सा लगता हूँ
टूटे हुए रिश्तों को जोड़ना भी कितना मुश्किल है |
शौर्य जीत सिंह
१५/१०/२०११
जमशेदपुर
No comments:
Post a Comment