Thursday, November 20, 2025

घाघरा और गंगा

घाघरा

बदल लेती है अपना रास्ता

हर साल

बुन देती है कुछ नए खेत

किसी एक कोने पर

तो उजड़ जाते हैं

कुछ सालों पुराने 

खेत, घर और तटबंध


बिल्कुल हमारी ही तरह

घाघरा में शक्ति है

सृजन और कल्याण की

और शक्ति है

विनाश और विध्वंस की


लेकिन विनाश हो या सृजन

घाघरा शांत हो जाती है

गंगा में मिल जाने के बाद


आखिर एक दिन

हमें भी तो मिल जाना है

उसी गंगा में

घाघरा की तरह


शौर्य जीत सिंह

मुंबई

19 नवंबर 2025


Sunday, October 12, 2025

बाबा की खटिया

गाँव वाले घर के बरामदे में

बाबा की एक खटिया बिछती थी

बाकी सब खटियों से अलग

मोटे पैरों वाली

और बाकियों से कुछ और चौड़ी

बाबा की खटिया

अलग थी सबसे


जिस पर दिन भर एक गद्दा 

मोड़ कर सिरहाने रख जाता था

और रात में वही बिछ जाता था

उनके सोने के लिए

उनके सोने से पहले,

हमारे खेल कूद का मैदान होता था

बाबा की खटिया का सफेद बिस्तर


बाबा के जाने के बाद भी

कई सालों तक

उनकी खटिया, उनके होने का आभास छोड़ जाती थी


इस बार गांव के घर पर

उनकी खटिया की जगह

लकड़ी का सोफा था


पर उस सोफे पर

कोई सोता नहीं

कोई खेलता नहीं


अब उस बरामदे में

बाबा के होने का एहसाह नहीं होता

खटिया के पाए भी

पीछे किसी कमरे में खुले रखे थे

शायद अगले जाड़े में

जलाने के काम आयेंगे


गुजरने पर उनके

उनको सालों पहले ही फूंक आए थे 

उनके एहसास के लिए ये जाड़े बहुत होंगे


शौर्य जीत सिंह

१२/१०/२०२५