आज फ़िर से अपना बचपन देखा,
जब माँ से बिछड़ते हुए
स्टेशन पे,
एक बच्चे की आँखें नम हो गयी।
रुँधे हुए गले से निकले शब्द
टूटे काँच जैसे
कानों पर बिखरते थे,
और छोड़ जाते थे
एक गहरी खरोंच
मेरे मन पे।
जल्दी लौट आने का वादा दे कर
जो बच्चा बाप के साथ
ट्रेन में चढ़ गया
मेरे अतीत का ही कोई हिस्सा था।
जो आँसू की एक बूँद मेरी आँख से टपकी
कुछ बीस साल पुरानी थी शायद।
३१ मार्च २०१५, आज़मगढ़
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