काव्य-कुसुम
अम्बर भर काजल से बेहतर, मुठ्ठी भर सिन्दूर बनो.
Thursday, September 13, 2012
त्रिवेणी
ज़िन्दगी की रफ़्तार हर बार थोड़ी और तेज़ हो जाती है,
और मैं हर बार थोडा और पीछे छूट जाता हूँ,
ज़िन्दगी ने वो सारे ढाबे मिस कर दिए, जिनपे देर तक पकी चाय मिलती है |
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शौर्य जीत सिंह
३० अगस्त, २०१२
जमशेदपुर.
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