प्लेटफ़ॉर्म के उस तरफ,
दो गुज़रती हुई ट्रेनों की खिड़कियों के बीच,
उसका चेहरा दिखा,
और कुछ देर बाद,
ओझल हो गया,
ना जाने कौन सी खिड़की में गुम हो गया,
मुलाक़ात बरसों बाद की थी,
जो शुरुआत से पहले ही ख़तम हो गयी,
मैं कभी समझ ना सका,
कब ये छोटी सी दूरी,
मीलों के फासलों में तब्दील हो गयी,
कुछ मिनटों में सब कुछ गुज़र गया,
अगर कुछ बचा,
तो सिर्फ़ प्लेटफ़ॉर्म,
भीड़,
लोगों को दूर करती खिड़कियाँ,
और मैं |
शौर्य जीत सिंह
१२/०५/२०१२
दिल्ली
दो गुज़रती हुई ट्रेनों की खिड़कियों के बीच,
उसका चेहरा दिखा,
और कुछ देर बाद,
ओझल हो गया,
ना जाने कौन सी खिड़की में गुम हो गया,
मुलाक़ात बरसों बाद की थी,
जो शुरुआत से पहले ही ख़तम हो गयी,
मैं कभी समझ ना सका,
कब ये छोटी सी दूरी,
मीलों के फासलों में तब्दील हो गयी,
कुछ मिनटों में सब कुछ गुज़र गया,
अगर कुछ बचा,
तो सिर्फ़ प्लेटफ़ॉर्म,
भीड़,
लोगों को दूर करती खिड़कियाँ,
और मैं |
शौर्य जीत सिंह
१२/०५/२०१२
दिल्ली
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