Thursday, November 20, 2025

घाघरा और गंगा

घाघरा

बदल लेती है अपना रास्ता

हर साल

बुन देती है कुछ नए खेत

किसी एक कोने पर

तो उजड़ जाते हैं

कुछ सालों पुराने 

खेत, घर और तटबंध


बिल्कुल हमारी ही तरह

घाघरा में शक्ति है

सृजन और कल्याण की

और शक्ति है

विनाश और विध्वंस की


लेकिन विनाश हो या सृजन

घाघरा शांत हो जाती है

गंगा में मिल जाने के बाद


आखिर एक दिन

हमें भी तो मिल जाना है

उसी गंगा में

घाघरा की तरह


शौर्य जीत सिंह

मुंबई

19 नवंबर 2025