घाघरा
बदल लेती है अपना रास्ता
हर साल
बुन देती है कुछ नए खेत
किसी एक कोने पर
तो उजड़ जाते हैं
कुछ सालों पुराने
खेत, घर और तटबंध
बिल्कुल हमारी ही तरह
घाघरा में शक्ति है
सृजन और कल्याण की
और शक्ति है
विनाश और विध्वंस की
लेकिन विनाश हो या सृजन
घाघरा शांत हो जाती है
गंगा में मिल जाने के बाद
आखिर एक दिन
हमें भी तो मिल जाना है
उसी गंगा में
घाघरा की तरह
शौर्य जीत सिंह
मुंबई
19 नवंबर 2025